झांसी अस्पताल में कैसे जल मरे 10 नवजात?
झांसी मेडिकल कॉलेज में आग लगने की घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। इस हादसे में 10 नवजात बच्चों की जिंदा जलकर मौत हो गई। जो तस्वीरें वहां से सामने आईं, उन्होंने हर किसी का दिल दहला दिया। परिवार अपने मासूम बच्चों की जली हुई लाशें राख के ढेर में खोजने को मजबूर थे। उनके चेहरों पर बदहवासी और आंखों में सूखे हुए आंसू, सिस्टम की लापरवाही की दर्दनाक तस्वीर बयां कर रहे थे।
मासूमों की मौत: हादसा नहीं, हत्या
परिवार के लोग दावा कर रहे हैं कि यह घटना सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि अस्पताल प्रशासन की लापरवाही से हुई हत्या है। जिस एनआईसीयू (नवजात गहन चिकित्सा यूनिट) को वर्ल्ड-क्लास सुविधाओं से लैस बताया गया था, वहीं अब मौत का चेंबर बन चुका है। जिन बच्चों की जिंदगी अभी शुरू भी नहीं हुई थी, उन्हें इस लापरवाही ने हमेशा के लिए खत्म कर दिया।
अस्पताल प्रशासन पर सवाल
घटनास्थल पर जो फायर एक्सटिंग्विशर थे, वे चार साल पहले ही एक्सपायर हो चुके थे। जब आग बुझाने की कोशिश की गई, तो वे काम नहीं कर पाए। सवाल यह है कि जब अस्पताल में आग बुझाने के जरूरी इंतजाम नहीं थे, तो वहां फायर सेफ्टी ऑडिट कैसे पास हो गया?
परिजनों ने बताया कि आग लगने के बाद अलार्म तक नहीं बजा। नर्सिंग स्टाफ ने अंदर जाने से रोकने की कोशिश की, लेकिन परिजन खुद खिड़कियां तोड़कर अंदर घुसे। जिन बच्चों को बचाया जा सकता था, उन्हें भी लापरवाही ने छीन लिया।
सीएमएस का बेतुका बयान
अस्पताल के चीफ मेडिकल सुपरिटेंडेंट (सीएमएस) सचिन माहौर का बयान और भी चौंकाने वाला था। उन्होंने कहा, “यह इलेक्ट्रॉनिक उपकरण हैं, शॉर्ट सर्किट हो सकता है।” क्या यह बयान उन परिवारों के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा नहीं है, जिनके बच्चे जिंदा जल गए?
फायर सेफ्टी के दावे जलकर राख
फरवरी में हुए फायर सेफ्टी ऑडिट और जून में फायर ड्रिल की सच्चाई इस घटना ने उजागर कर दी। जब आग लगी, तो न केवल अलार्म फेल हुआ, बल्कि फायर एग्जिट भी काम नहीं आया। सवाल यह उठता है कि क्या यह सब भ्रष्टाचार और लापरवाही का नतीजा था?
भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी का नतीजा
इस दर्दनाक घटना ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि जिन बच्चों ने सरकार के अस्पताल पर भरोसा किया, उन्हें इसकी सजा क्यों मिली? जिन परिवारों ने अपने मासूमों को खोया है, वे यह सवाल पूछ रहे हैं कि उनके बच्चों का गुनाह क्या था?
परिवारों का दर्द
परिजनों ने बताया कि आग लगने के बाद बच्चे कहां हैं, इसकी जानकारी तक किसी ने नहीं दी। जब वे अस्पताल पहुंचे, तो डॉक्टर और स्टाफ गायब हो चुके थे। एक पिता ने बताया कि उनके हाथ में बच्चों के जले हुए शव थे, और अस्पताल प्रशासन कोई जवाब देने के बजाय बहाने बना रहा था।
सरकार का दावा और हकीकत
जनवरी में सरकार ने बड़े दावे किए थे कि झांसी मेडिकल कॉलेज का एनआईसीयू वर्ल्ड-क्लास सुविधाओं से लैस है। लेकिन यही एनआईसीयू अब मौत का कब्रिस्तान बन गया। बच्चों की मौत का जिम्मेदार कौन है? सरकार, अस्पताल प्रशासन, या दोनों?
दोषियों पर कार्रवाई का इंतजार
हालांकि सरकार ने निष्पक्ष जांच का आश्वासन दिया है, लेकिन क्या यह भरोसा दिलाने के लिए काफी है? सवाल यह है कि जिन मासूमों ने अभी अपनी आंखें भी नहीं खोली थीं, उनकी मौत का हिसाब कौन देगा?
आखिरी सवाल
झांसी की यह घटना पूरे सिस्टम की नाकामी को उजागर करती है। जब अस्पताल में ही इंसान सुरक्षित नहीं है, तो बाहर क्या होगा? क्या इन सवालों के जवाब कभी मिलेंगे, या यह हादसा भी बाकी घटनाओं की तरह भुला दिया जाएगा?
यह हादसा नहीं, बल्कि सिस्टम की नाकामी का एक दर्दनाक उदाहरण है। हमारी प्रार्थना है कि जिन परिवारों ने अपने बच्चों को खोया है, उन्हें न्याय मिले और यह सिस्टम कभी किसी और मासूम की जिंदगी को यूं बर्बाद न करे।
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